कुछ दिन पहले मैं एक सत्संग गयी थी. वहाँ भागवत कथा चल रही थी. सीता जी के चरित्र का गुणगान गया जा रहा था और एक अच्छी पत्नी क गुण समझाए जा रहे थे. जो सज्जन व्यक्ति प्रवचन दे रहे थे, उनका कहना था की एक अची पत्नी का कर्त्तव्य है की अपने पति का हर हाल में साथ दे, उसके लिए अपनी खुशियों का त्याग करे और अपना पत्नी धर्म हर हालत में निभाए.
परन्तु क्या अज भी हम त्रेता युग में ही जी रहे हैं, जो आज भी ये सारी बातें हूबहू हमें वैसे ही समझाई जा रही हैं, और मानने को भी कहा जा रहा है. क्या आज और उस समय में कोई अंतर ही नहीं रह गया जो सारी बातें वैसे क वैसे लागू हो जायें??
आज के युग की नारी बहुत आगे बढ़ चुकी है और पुरुष के साथ कदम से कदम मिला कर चलती है। वो नाही अपना ध्यान रखना बल्कि अपने परिवार की भी देख रेख करना बखूबी जानती है।
और अब वो युग नहीं रह गया की वो अपनी खुशियों का बलिदान देगी तभी वो अपने पति को खुश रख पायेगी। उससे बखूबी पता है की केसे उससे अपनी और साथ ही साथ पति व परिवार की खुशियों और ज़रूरतों को एक ही डोर में बांधना है।
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